एक बार एक महिला श्रीमाँ के दर्शन करके उनके कक्ष से बाहर आयीं। वे भागवत प्रेम से अभिभूत थी। हृदय में उल्लास इस प्रकार उमड़ रहा था कि वे समस्त संसार को आर्लिंगबद्ध करना चाहती थी ।
उस समय श्रीमाँ के कक्ष की सीढ़ी पर मैगी, सरोजा और कुमुदा के अतिरिक्त दो अन्य व्यक्ति श्रीमाँ के पास जाने के लिये प्रतीक्षा कर रहे थे। इन महिला ने मैगी तथा एक अन्य भक्त का आर्लिंगन किया और नीचे चली गयीं। उनके जाने के बाद इन पांचों व्यक्तियों में आर्लिंगन के विषय में चर्चा होने लगी । उनमें से दो ने कहा, ” हमारी माँ ने बचपन के बाद कभी हमारा आर्लिंगन नहीं किया। हमें आर्लिंगन का कोई अनुभव ही नहीं है ।”
जब मैगी अंदर गयी श्रीमाँ ने उसको अपने आर्लिंगन में बद्ध कर लिया, जैसा वे अनेक बार कर चुकी थी, और पूछा, “क्या तुम्हें आर्लिंगन अच्छा लगता है?” उस पर स्वर्गिक कृपा का आनंद उठाते हुए मैगी ने उत्तर दिया, “हाँ, माँ ।”
इसके बाद श्रीमाँ ने उन सभी का आर्लिंगन किया जिनहोने सीढ़ी पर आर्लिंगन के विषय में होने वाले सभी विचार-विमर्श में भाग लिया था ।
(यह कथा श्रीमाँ की फ्रांसीसी सचिव मैगी ने मुझे सुनाई थी । )
संदर्भ : श्रीअरविंद एवं श्रीमाँ की दिव्य लीला
भगवान के प्रति आज्ञाकारिता में सरलता के साथ सच्चे रहो - यह तुम्हें रूपांतर के…
अधिकतर लोग कार्यों को इसलिये करते हैं कि वे उन्हें करने पड़ते है, इसलिये नहीं…
मधुर माँ, जब श्रीअरविंद चेतना के परिवर्तन की बात करते हैं तो उनका अर्थ क्या…