जब हम मानसिक प्रवुत्तियों में अथवा बुद्धि के व्यापारों में एकाग्र रहते हैं, तब कभी-कभी भगवान को क्यों भूल जाते अथवा उनका स्पर्श क्यों गवां बैठते है ?
तुम इसलिए गवां बैठते हो क्योंकि तुम्हारी चेतना अभी तक बंटी हुई है । तुम्हारें मन में भगवान अभी तक अच्छी तरह बसे नहीं है ; अभी तक तुम दिव्य जीवन पर पूर्ण रूप से न्योछावर नहीं हुए हो । नहीं तो इस प्रकार के कामों में तुम चाहे जितने लीन क्यों न रहो, फिर भी तुम्हे यह भान रहेगा कि भगवान तुम्हारी सहायता कर रहे हैं और तुम्हें सहारा दिये हुए है ।
संदर्भ : प्रश्न और उत्तर १९२९-१९३१
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