भगवान तथा संसार में भगवान की क्रिया, दोनों हमेशा अशुभ की अति पर एक सीमा का काम करते हैं, और साथ ही शुभ को असीम शक्ति प्रदान करते हैं। और शुभ की यह असीम शक्ति ही बाह्य रूप से, अभिव्यक्ति में अशुभ के फैलने पर सीमा लगा देती है।
स्वभावतः, मनुष्यों की बहुत सीमित दृष्टि को कभी-कभी ऐसा लगता है कि अशुभ की कोई सीमा नहीं है और वह अपनी पराकाष्ठा तक जा पहुंचता है। लेकिन यह पराकाष्ठा अपने-आपमें एक सीमा है । उसे एक जगह हमेशा रुकना पड़ता है, क्योंकि एक बिन्दु है जहां भगवान उठ खड़े होते हैं और कहते है : “तुम इससे आगे नहीं बढ़ोगे। ” चाहे वह प्रकृति के महान विनाश हो या मनुष्य के पैशाचिक कृत्य, हमेशा एक ऐसा क्षण आता है जब भगवान हस्तक्षेप करते हैं और चीजों को आगे बढ्ने से रोक देते हैं ।
संदर्भ : प्रश्न और उत्तर १९५५
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