जब शारीरिक अव्यवस्था आये तो तुम्हें डरना नहीं चाहिये, तुम्हें उससे निकल भागना नहीं चाहिये, तुम्हें उसका सामना साहस, शांति, भरोसे और इस निश्चिति के साथ करना चाहिये कि बीमारी एक मिथ्यात्व है और अगर तुम पूरे भरोसे के साथ, पूरी तरह भागवत कृपा की ओर पूर्ण अचंचलता के साथ मुड़ो तो वह कृपा इन कोषाणुओं में उसी तरह पैठ जायेगी जिस तरह वह सत्ता की गहराइयों में पैठती ही, और स्वयं कोषाणु शाश्वत सत्य और आनंद के भागीदार होंगे।
संदर्भ : माताजी के वचन (भाग-३)
शुद्धि मुक्ति की शर्त है। समस्त शुद्धीकरण एक छुटकारा है, एक उद्धार है; क्योंकि यह…
मैं मन में श्रीअरविंद के प्रकाश को कैसे ग्रहण कर सकता हूँ ? अगर तुम…
...पूजा भक्तिमार्ग का प्रथम पग मात्र है। जहां बाह्य पुजा आंतरिक आराधना में परिवर्तित हो…