एक आन्तरिक विनम्रता अत्यंत आवश्यक है, किन्तु मुझे नहीं लगता कि बाहरी विनम्रता बहुत उपयुक्त है (निस्संदेह दूसरों के साथ बाहरी व्यवहार में घमण्ड या उद्दंडता या मिथ्याभिमान का अभाव अपरिहार्य है ) – यह प्राय: घमण्ड पैदा करती हैं, कुछ समय के बाद औपचारिक अथवा प्रभावहीन बन जाती है।

संदर्भ : श्रीअरविंद के पत्र (भाग-२)

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