कोई भी हर व्यक्ति को हर चीज़ बताने के लिए बाध्य नहीं है – इससे प्राय: अच्छा होने की अपेक्षा हानि हो सकती है। हर व्यक्ति को उतनी ही बात करनी चाहिये जो आवश्यक हो। निस्संदेह जो बात कही जाये वह सत्य होनी चाहिये, मिथ्या नहीं। और निश्चित रूप से धोखा देने का इरादा तो कभी नहीं होना चाहिये।
संदर्भ : श्रीअरविंद के पत्र
तुम्हारी श्रद्धा, निष्ठा और समर्पण जितने अधिक पूर्ण होंगे, भगवती मां की कृपा और रक्षा भी…
भगवान् ही अधिपति और प्रभु हैं-आत्म-सत्ता निष्क्रिय है, यह सर्वदा शान्त साक्षी बनी रहती है…
अगर चेतना के विकास को जीवन का मुख्य उद्देश्य मान लिया जाये तो बहुत-सी कठिनाइयों…
दुश्मन को खदेड़ने का सबसे अच्छा तरीक़ा है उसके मुँह पर हँसना! तुम उसके साथ…
आलोचना की आदत-अधिकांशतः अनजाने में की गयी दूसरों की आलोचना-सभी तरह की कल्पनाओं, अनुमानों, अतिशयोक्तियों,…