कोई भी हर व्यक्ति को हर चीज़ बताने के लिए बाध्य नहीं है – इससे प्राय: अच्छा होने की अपेक्षा हानि हो सकती है । हर व्यक्ति को उतनी ही बात करनी चाहिये जो आवश्यक हो। निस्संदेह जो बात कही जाये वह सत्य होनी चाहिये, मिथ्या नहीं। और निश्चित रूप से धोखा देने का इरादा तो कभी नहीं होना चाहिये।
संदर्भ : श्रीअरविंद के पत्र
एक आन्तरिक विनम्रता अत्यंत आवश्यक है, किन्तु मुझे नहीं लगता कि बाहरी विनम्रता बहुत उपयुक्त…
चेतना के परिवर्तन द्वारा वस्तुओं की बाहरी प्रतीतियों से निकल कर उनके पीछे की सच्चाई…
नीरवता ! नीरवता ! यह ऊर्जाएँ एकत्र करने का समय है, व्यर्थ और निरर्थक शब्दों…
जब तक कि मनुष्य अपने अन्दर गहराई में नहीं जीता और बाहरी क्रिया-कलापों को बस…