” जब मैं ‘अज्ञान’ में सोया पड़ा था,
तो मैं एक ऐसे ध्यान-कक्ष में पहुंचा
जो साधू-संतों से भरा था |
मुझे उनकी संगति उबाऊ लगी और
स्थान एक बंदीगृह प्रतीत हुआ;
जब मैं जगा तो
भगवान् मुझे एक बंदीगृह में ले गये
और उसे ध्यान-मंदिर
और अपने मिलन-स्थल में बदल दिया | ”
संदर्भ: कारावास की कहानी
तुम्हारी श्रद्धा, निष्ठा और समर्पण जितने अधिक पूर्ण होंगे, भगवती मां की कृपा और रक्षा भी…
भगवान् ही अधिपति और प्रभु हैं-आत्म-सत्ता निष्क्रिय है, यह सर्वदा शान्त साक्षी बनी रहती है…
अगर चेतना के विकास को जीवन का मुख्य उद्देश्य मान लिया जाये तो बहुत-सी कठिनाइयों…
दुश्मन को खदेड़ने का सबसे अच्छा तरीक़ा है उसके मुँह पर हँसना! तुम उसके साथ…
आलोचना की आदत-अधिकांशतः अनजाने में की गयी दूसरों की आलोचना-सभी तरह की कल्पनाओं, अनुमानों, अतिशयोक्तियों,…