१ : उन दिनों की बात है जब श्रीमाँ साधकों को अपने कर कमलों से सूप वितरित करती थी। एक साधक सूप वितरण के समय फटी क़मीज़ पहन कर आये। श्रीमाँ की दृष्टि, छोटी से छोटी बात पर भी जाती थी।

सूप वितरण के बाद उन्होंने इस साधक को बुलाकर कहा कि वे आश्रम के दर्जियों, शुची और सरला के पास जाकर एक नयी क़मीज़ सिलवा लें। बाद में चम्पकलाल ने इस साधक से कहा कि श्रीमाँ उसे फटी क़मीज़ पहने देखकर अप्रसन्न हुई। वे स्वयं पैबंद लगी हुई साड़ियाँ पहनती थी किंतु फटी हुई नहीं।

आश्रम की क्रीड़ाभूमि में बच्चों के जूते,फ़ीते,बटन आदि फटे या टूटे होने पर उनके अंक कट जाते थे।

२: एक दिन स्वर्गीय परीचन्द  श्रीमाँ के टैरेस दर्शन के लिये गये तो उन्होंने एक धुली हुई क़मीज़ निकाल कर पहन ली किंतु जल्दी में उनका ध्यान इस ओर नहीं गया कि क़मीज़ पीछे से फटी हुई थी। श्रीमाँ ने टैरेस से उन्हें देखा और उस समय तो कुछ नहीं कहा किंतु नीचे आने पर उन्होंने अमृता से कहा कि परीचन्द की फटी क़मीज़ लेकर उसकी मरम्मत करा लायें। भले ही साधकों के कपड़ों पर बड़े-बड़े पैबंद लगे हुए हों किंतु अपने बच्चों का फटे कपड़े पहनना श्रीमाँ को स्वीकार नहीं था।

(ये दोनो कथाएँ स्वर्गीय श्री परीचन्द ने मुझे सुनाई थीं।)

संदर्भ : श्रीअरविंद और श्रीमाँ की दिव्य लीला 

शेयर कीजिये

नए आलेख

आत्मा के प्रवेश द्वार

यदि तुम्हारें ह्रदय और तुम्हारी आत्मा में आध्यात्मिक परिवर्तन के लिए सच्ची अभीप्सा jहै, तब…

% दिन पहले

शारीरिक अव्यवस्था का सामना

जब शारीरिक अव्यवस्था आये तो तुम्हें डरना नहीं चाहिये, तुम्हें उससे निकल भागना नहीं चाहिये,…

% दिन पहले

दो तरह के वातावरण

आश्रम में दो तरह के वातावरण हैं, हमारा तथा साधकों का। जब ऐसे व्यक्ति जिनमें…

% दिन पहले

जब मनुष्य अपने-आपको जान लेगा

.... मनुष्य का कर्म एक ऐसी चीज़ है जो कठिनाइयों और परेशानियों से भरी हुई…

% दिन पहले

दृढ़ और निरन्तर संकल्प पर्याप्त है

अगर श्रद्धा हो , आत्म-समर्पण के लिए दृढ़ और निरन्तर संकल्प हो तो पर्याप्त है।…

% दिन पहले

देशभक्ति की भावना तथा योग

देशभक्ति की भावनाएँ हमारे योग की विरोधी बिलकुल नहीं है, बल्कि अपनी मातृभूमि की शक्ति…

% दिन पहले