श्रेणियाँ श्री माँ के वचन

प्रगति के लिये प्रयास

माताजी, हर बार जब मैं अपनी चेतना में  जरा उठने की कोशिश करता हूँ तो एक धक्का-सा लगता है और ऐसा मालूम होता है कि मैं उठने की जगह गिर रहा हूँ। जब मैं प्रयास छोड़ देता हूँ तो सब स्वाभाविक हो जाता है । 

जहां तक प्रगति का संबंध है, ऐसा इसलिए होता है कि तुम मानसिक रूप से प्रयास कर रहे हो और मन हमेशा चेतना के लिये सीमा-बंधन होता है। केवल हृदय और चैत्य से उठने वाली अभीप्सा ही प्रभावकारी हो सकती है। (और जब तुम प्रयास करना छोड़ देते हो तो तुम मुझे अपने अंदर काम करने देते हो और मैं उचित मार्ग जानती हूँ !)

संदर्भ : श्रीमातृवाणी(खण्ड-१६)

शेयर कीजिये

नए आलेख

रूपांतर का मार्ग

भगवान के प्रति आज्ञाकारिता में सरलता के साथ सच्चे रहो - यह तुम्हें रूपांतर के…

% दिन पहले

सच्चा ध्यान

सच्चा ध्यान क्या है ? वह भागवत उपस्थिती पर संकल्प के साथ सक्रिय रूप से…

% दिन पहले

भगवान से दूरी ?

स्वयं मुझे यह अनुभव है कि तुम शारीरिक रूप से, अपने हाथों से काम करते…

% दिन पहले

कार्य के प्रति मनोभाव

अधिकतर लोग कार्यों को इसलिये करते हैं कि वे उन्हें करने पड़ते है, इसलिये नहीं…

% दिन पहले

चेतना का परिवर्तन

मधुर माँ, जब श्रीअरविंद चेतना के परिवर्तन की बात करते हैं तो उनका अर्थ क्या…

% दिन पहले

जीवन उत्सव

यदि सचमुच में हम, ठीक से जान सकें जीवन के उत्सव के हर विवरण को,…

% दिन पहले