श्रीअरविंद आश्रम की श्रीमाँ क्रिसमस पर्व पर
मधुर मां, हम यह कैसे जान सकते हैं कि हम व्यक्तिगत और सामुदायिक रूप में प्रगति कर रहे हैं या नहीं?
हम प्रगति कर रहे हैं या नहीं इसका अंदाज न लगाने की कोशिश करना ही हमेशा वाञ्छनीय होता है क्योंकि इससे तुम्हें प्रगति करने में सहायता नहीं मिलती-इसके विपरीत होता है। यदि प्रगति के लिए अभीप्सा सच्ची हो तो निश्चित रूप से वह परिणाम लायेगी। लेकिन तुम व्यक्तिगत या सामुदायिक रूप से चाहे जितनी प्रगति कर चुके हो, फिर भी जो प्रगति करनी बाकी है वह इतनी अधिक होती है कि राह में रुक कर, तुमने जो
प्रगति की है उसका अंदाज लगाने की कोई जरूरत नहीं।
की हुई प्रगति का बोध सहज रूप से, इस अचानक और अप्रत्याशित बोध से आना चाहिये कि तुम उसको तुलना में क्या हो जो कुछ समय पहले थे। बस इतना ही-लेकिन इसके लिए भी तो चेतना की काफी ऊंची कोटि के विकास की जरूरत होती है।
संदर्भ : श्रीमातृवाणी (खण्ड-१६)
तुम्हारी श्रद्धा, निष्ठा और समर्पण जितने अधिक पूर्ण होंगे, भगवती मां की कृपा और रक्षा भी…
भगवान् ही अधिपति और प्रभु हैं-आत्म-सत्ता निष्क्रिय है, यह सर्वदा शान्त साक्षी बनी रहती है…
अगर चेतना के विकास को जीवन का मुख्य उद्देश्य मान लिया जाये तो बहुत-सी कठिनाइयों…
दुश्मन को खदेड़ने का सबसे अच्छा तरीक़ा है उसके मुँह पर हँसना! तुम उसके साथ…
आलोचना की आदत-अधिकांशतः अनजाने में की गयी दूसरों की आलोचना-सभी तरह की कल्पनाओं, अनुमानों, अतिशयोक्तियों,…