जो लोग हमेशा प्रगति करते रहना चाहते हैं उनके लिए प्रगति करने के तीन मुख्य मार्ग हैं :
१-अपनी चेतना के क्षेत्र को विस्तृत करना।
२-हम जो कुछ जानते हैं उसे हमेशा ज्यादा अच्छी तरह और ज्यादा पूर्णता के साथ समझना।
३-भगवान् को पाना और उनकी इच्छा के प्रति अधिकाधिक समर्पण करना।
दूसरे शब्दों में इसका अर्थ हुआ :
१-यन्त्र की क्षमताओं को सदा समृद्ध करते रहना।
२-इस यन्त्र की क्रियाशीलता को सदा बिना रुके पूर्ण बनाते रहना।
३-इस यन्त्र को भगवान् के प्रति अधिकाधिक ग्रहणशील और आज्ञाकारी बनाते रहना।
अधिकाधिक चीजों को समझना और करना सीखना।
अपने-आपको ऐसी चीजों से शुद्ध करना जो हमें भगवान् के प्रति सम्पूर्ण समर्पण करने से रोकती है।
अपनी चेतना को भागवत प्रभाव के प्रति अधिकाधिक सचेतन और ग्रहणशील बनाना।
हम कह सकते हैं : अपने-आपको अधिकाधिक विस्तृत करना, अपने-आपको अधिकाधिक गहरा बनाना, अपने-आपको अधिकाधिक पूर्ण रीति से अर्पित करना।
संदर्भ : श्रीमातृवाणी (खण्ड १६)
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