यह योग सत्ता के रूपांतरण का योग है, न कि मात्र आंतरिक सत्ता या भगवान की उपलब्धि का, यद्यपि इसके आधार में वह उपलब्धि ही है जिसके बिना रूपांतरण सम्भव नहीं होता। इस रूपांतर में चार तत्व हैं : चैत्य-उद्घाटन, गूह्य मार्ग के रास्ते गुज़रना, आध्यात्मिक मुक्ति, अतिमानसिक पूर्णता। अगर इन चारों में से एक भी प्राप्त नहीं हुआ तो योग अपूर्ण ही रहेगा।
संदर्भ : श्रीअरविंद (खण्ड -१२)
सबसे पहले हमें सचेतन होना होगा, फिर संयम स्थापित करना होगा और लगातार संयम को…
प्रेम और स्नेह की प्यास मानव आवश्यकता है, परंतु वह तभी शांत हो सकती है…
पत्थर अनिश्चित काल तक शक्तियों को सञ्चित रख सकता है। ऐसे पत्थर हैं जो सम्पर्क की…