जब कोई आध्यात्मिक जीवन में प्रवेश करता है तो पारिवारिक बंधन, जो सामान्य प्रकृति की चीज़ है, विलीन हों जाता है — मनुष्य सभी पुरानी वस्तुओं के प्रति उदासीन हों जाता है । यह उदासीनता एक प्रकार की मुक्ति है। वास्तव में इस चीज़ के अन्दर कठोरता के भाव के होने की बिलकुल आवश्यकता नहीं। प्राचीन भौतिक स्नेह संबंधों से बंधे रहनेका अर्थ होगा सामान्य प्रकृति से बंधे रहना और वह चीज आध्यात्मिक प्रगति- मे बाधा पहुँचायेगी ।
संदर्भ : श्रीअरविंद के पत्र (भाग-२)
यदि तुम्हारें ह्रदय और तुम्हारी आत्मा में आध्यात्मिक परिवर्तन के लिए सच्ची अभीप्सा jहै, तब…
जब शारीरिक अव्यवस्था आये तो तुम्हें डरना नहीं चाहिये, तुम्हें उससे निकल भागना नहीं चाहिये,…
आश्रम में दो तरह के वातावरण हैं, हमारा तथा साधकों का। जब ऐसे व्यक्ति जिनमें…
.... मनुष्य का कर्म एक ऐसी चीज़ है जो कठिनाइयों और परेशानियों से भरी हुई…
अगर श्रद्धा हो , आत्म-समर्पण के लिए दृढ़ और निरन्तर संकल्प हो तो पर्याप्त है।…