जब कोई आध्यात्मिक जीवन में प्रवेश करता है तो पारिवारिक बंधन, जो सामान्य प्रकृति की चीज़ है, विलीन हों जाता है — मनुष्य सभी पुरानी वस्तुओं के प्रति उदासीन हों जाता है । यह उदासीनता एक प्रकार की मुक्ति है। वास्तव में इस चीज़ के अन्दर कठोरता के भाव के होने की बिलकुल आवश्यकता नहीं। प्राचीन भौतिक स्नेह संबंधों से बंधे रहनेका अर्थ होगा सामान्य प्रकृति से बंधे रहना और वह चीज आध्यात्मिक प्रगति- मे बाधा पहुँचायेगी ।
संदर्भ : श्रीअरविंद के पत्र (भाग-२)
तुम्हारी श्रद्धा, निष्ठा और समर्पण जितने अधिक पूर्ण होंगे, भगवती मां की कृपा और रक्षा भी…
भगवान् ही अधिपति और प्रभु हैं-आत्म-सत्ता निष्क्रिय है, यह सर्वदा शान्त साक्षी बनी रहती है…
अगर चेतना के विकास को जीवन का मुख्य उद्देश्य मान लिया जाये तो बहुत-सी कठिनाइयों…
दुश्मन को खदेड़ने का सबसे अच्छा तरीक़ा है उसके मुँह पर हँसना! तुम उसके साथ…
आलोचना की आदत-अधिकांशतः अनजाने में की गयी दूसरों की आलोचना-सभी तरह की कल्पनाओं, अनुमानों, अतिशयोक्तियों,…