पापी की सहायता के लिए ‘कृपा’ कैसे आ सकती है भला?
वह पापी को पापी बने रहने में सहायता नहीं करती! वह उसके पाप से पिण्ड छुड़ाने में उसकी मदद करती है। यानी, वह पापी को यह कह कर परे नहीं धकेल देती कि, “मैं तुम्हारे लिए कुछ नहीं करूँगी।” ‘कृपा’ तो हमेशा बनी रहती है, तब भी जब वह पापकर्म करता है, उसे पाप जारी
रखने के लिए नहीं बल्कि उसमें से निकलने के लिए ‘कृपा’ कार्य करती है।
तुम जानते हो कि इसमें और इस विचार में बहुत भेद है कि तुम ख़राब हो इसलिए “मैं तुम्हारा ख़याल नहीं रखूगी, मैं तुम्हें अपने से बहुत दूर फेंक दूंगी, और तुम्हारे साथ जो होना हो हो, मेरा इससे कोई सरोकार नहीं।” बात ऐसी नहीं है। तुम ‘कृपा’ का अनुभव भले न कर पाओ, लेकिन वह हमेशा बनी रहेगी, यहाँ तक कि बुरे से बुरा पापी भी अगर बदलना चाहे तो वह उसे बदलने के लिए, उसके पाप का इलाज करने के लिए उपस्थित रहेगी। वह उसका परित्याग नहीं करेगी, लेकिन पाप करने में उसकी मदद नहीं करेगी। तब तो वह ‘कृपा’ नहीं होगी।
संदर्भ : प्रश्न और उत्तर १९५४
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