श्रेणियाँ अन्य

पानी की व्यवस्था

नहाने की व्यवस्था से पीने के पानी की व्यवस्था और भी निराली थी। गर्मी का मौसम, मेरे छोटे-से कमरे में हवा का प्रवेश लगभग निषिद्ध था किन्तु मई महीने की उग्र और प्रखर धूप बेरोक-टोक घुस आती थी। कमरा जलती भट्टी-सा हो उठता था। इस भट्टी में तपते हए अदम्य जलतृष्णा को कम करने का उपाय था वही टीन की बाल्टी का अर्धउष्ण जल बार-बार वही पीता था, प्यास तो नहीं बुझती थी वरन् पसीना छूटता और कुछ देर में फिर से प्यास लग आती थी। पर हाँ, किसी-किसी के आँगन में मिट्टी की सुराही रखी होती, वे अपने पूर्वजन्म की तपस्या का स्मरण कर अपने को धन्य मानते। तब घोर पुरुषार्थवादी को भी भाग्य में विश्वास करने को बाध्य होना पड़ता था, किसी के भाग्य में ठण्डा पानी बदा था तो किसी के भाग्य में प्यास, सब था भाग्य का फेर  अधिकारीगण, किन्त, पूर्ण पक्षपातरहित हो, कलसी या बाल्टी वितरण करते थे। इस यदृच्छालाभ से मेरे सन्तुष्ट होने या न होने से भी मेरा जल-कष्ट जेल के सहदय डाक्टर बाबू को असह्य हो उठा। वे कलसी जुटाने में लगे किन्तु क्योंकि इस बन्दोबस्त में उनका हाथ नहीं था इसलिए बहुत दिन तक इसमें सफल नहीं हुए, अन्त में उनके ही कहने से मुख्य जमादार ने कहीं से कलसी का आविष्कार किया। उससे पहले ही तृष्णा के साथ अनेक दिन के घोर संग्राम से मैं पिपासा-मुक्त हो चला था।

 

संदर्भ : कारावास की कहानी 

शेयर कीजिये

नए आलेख

भगवती माँ की कृपा

तुम्हारी श्रद्धा, निष्ठा और समर्पण जितने अधिक पूर्ण होंगे, भगवती मां की कृपा और रक्षा भी…

% दिन पहले

श्रीमाँ का कार्य

भगवान् ही अधिपति और प्रभु हैं-आत्म-सत्ता निष्क्रिय है, यह सर्वदा शान्त साक्षी बनी रहती है…

% दिन पहले

भगवान की आशा

मधुर माँ, स्त्रष्टा ने इस जगत और मानवजाति की रचना क्यों की है? क्या वह…

% दिन पहले

जीवन का उद्देश्य

अगर चेतना के विकास को जीवन का मुख्य उद्देश्य मान लिया जाये तो बहुत-सी कठिनाइयों…

% दिन पहले

दुश्मन को खदेड़ना

दुश्मन को खदेड़ने का सबसे अच्छा तरीक़ा है उसके मुँह पर हँसना! तुम उसके साथ…

% दिन पहले

आलोचना की आदत

आलोचना की आदत-अधिकांशतः अनजाने में की गयी दूसरों की आलोचना-सभी तरह की कल्पनाओं, अनुमानों, अतिशयोक्तियों,…

% दिन पहले