जो जीव नग्न और लज्जाविहीन होता है केवल वही पवित्र और निर्दोष हो सकता है, ठीक जैसे कि मानवता के आदिम बगीचे में आदम था।
संदर्भ : विचारमाला और सूत्रावली
जो अपने हृदय के अन्दर सुनना जानता है उससे सारी सृष्टि भगवान् की बातें करती…
‘भागवत कृपा’ के सामने कौन योग्य है और कौन अयोग्य? सभी तो उसी एक दिव्य…
सच्चा आराम आन्तरिक जीवन में होता है, जिसके आधार में होती है शांति, नीरवता तथा…