मैं अनुभव करता हूं कि मैं निष्फल भाग्य के साथ जन्मा आपका शून्य बालक हूं; ऐसे बालक के लिए जीवन में सम्पादित करने के लिए कोई कार्य नहीं है। क्या जगत् से चले जाना ज्यादा अच्छा न होगा?
तुम्हें इसी जगत् में बदलना होगा और परिवर्तन सम्भव है। अगर तुम इस जगत् से भाग जाओ तो तुम्हें वापिस आना पड़ेगा, शायद अधिक बुरी परिस्थितियों में आना पड़े और तुम्हें सारी चीज फिर एक नये सिरे से करनी पड़ेगी।
ज्यादा अच्छा है कि भीरु मत बनो, अभी परिस्थिति का सामना करो और उस पर विजय पाने के लिए आवश्यक प्रयास करो। सहायता सदैव तुम्हारे साथ है; तुम्हें उससे लाभ उठाना सीखना होगा।
सन्दर्भ : माताजी के वचन (भाग-३)
भगवान के प्रति आज्ञाकारिता में सरलता के साथ सच्चे रहो - यह तुम्हें रूपांतर के…
अधिकतर लोग कार्यों को इसलिये करते हैं कि वे उन्हें करने पड़ते है, इसलिये नहीं…
मधुर माँ, जब श्रीअरविंद चेतना के परिवर्तन की बात करते हैं तो उनका अर्थ क्या…