श्रीअरविंद ने कितनी ही बार इस बात को दोहराया है कि परमात्मा हास्यप्रिय हैं और हम ही उन्हें प्रशांत और सर्वदा गम्भीर रहने वाला बना देना चाहते हैं, और उन्हें यहाँ आकर किसी अविश्वासी का आर्लिंगन करने में मज़ा आता होगा।जिस व्यक्ति ने शायद पिछले दिन यह कहा था : “भगवान का अस्तित्व नहीं है, मैं उन पर विश्वास नहीं करता। यह तो मूर्खता और अज्ञान है।” . . . उसी को वे अपनी भुजाओं में ले लेते हैं, उसे अपनी छाती से चिपका लेते हैं – और एकदम उसके मुँह पर हसंते हैं।
संदर्भ : विचार और सूत्र के संदर्भ में
तुम्हारी श्रद्धा, निष्ठा और समर्पण जितने अधिक पूर्ण होंगे, भगवती मां की कृपा और रक्षा भी…
भगवान् ही अधिपति और प्रभु हैं-आत्म-सत्ता निष्क्रिय है, यह सर्वदा शान्त साक्षी बनी रहती है…
अगर चेतना के विकास को जीवन का मुख्य उद्देश्य मान लिया जाये तो बहुत-सी कठिनाइयों…
दुश्मन को खदेड़ने का सबसे अच्छा तरीक़ा है उसके मुँह पर हँसना! तुम उसके साथ…
आलोचना की आदत-अधिकांशतः अनजाने में की गयी दूसरों की आलोचना-सभी तरह की कल्पनाओं, अनुमानों, अतिशयोक्तियों,…