श्रीअरविंद ने कितनी ही बार इस बात को दोहराया है कि परमात्मा हास्यप्रिय हैं और हम ही उन्हें प्रशांत और सर्वदा गम्भीर रहने वाला बना देना चाहते हैं, और उन्हें यहाँ आकर किसी अविश्वासी का आर्लिंगन करने में मज़ा आता होगा।जिस व्यक्ति ने शायद पिछले दिन यह कहा था : “भगवान का अस्तित्व नहीं है, मैं उन पर विश्वास नहीं करता। यह तो मूर्खता और अज्ञान है।” . . . उसी को वे अपनी भुजाओं में ले लेते हैं, उसे अपनी छाती से चिपका लेते हैं – और एकदम उसके मुँह पर हसंते हैं।
संदर्भ : विचार और सूत्र के संदर्भ में
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