नींद ऐसा विद्यालय है जिसमें से मनुष्य को गुजरना पड़ता है अगर वह यह जानता है कि वहां अपने पाठ को कैसे सीखा जाये, ताकि आन्तरिक सत्ता भौतिक आकार से मुक्त, अपने अधिकार के बारे में सचेतन और अपने जीवन की स्वामिनी हो जाये। सत्ता के कुछ ऐसे पूरे-के-पूरे भाग हैं जिन्हें बाहरी यानी शरीर की सत्ता की इस निश्चलता और अर्ध-चेतना की आवश्यकता होती है ताकि वे अपना जीवन स्वतन्त्रता के साथ जी सकें।
यह और एक परिणाम के लिए एक और विद्यालय है, लेकिन फिर भी है यह विद्यालय ही। अगर तुम अधिकाधिक सम्भव प्रगति करना चाहते हो तो तुम्हें अपनी रातों का उसी तरह उपयोग करना आना चाहिये, ठीक उसी तरह जिस तरह तुम अपने दिनों का उपयोग करते हो। बस, सामान्यतः लोगों को इसका पता बिलकुल नहीं होता कि इसे किया कैसे जाये; वे जगे रहने की कोशिश करते हैं और इससे जो कुछ मिलता है वह केवल भौतिक और प्राणिक असन्तुलन होता है, और कभी-कभी तो मानसिक असन्तुलन भी।
सन्दर्भ : माताजी के वचन (भाग-३)
तुम्हारी श्रद्धा, निष्ठा और समर्पण जितने अधिक पूर्ण होंगे, भगवती मां की कृपा और रक्षा भी…
भगवान् ही अधिपति और प्रभु हैं-आत्म-सत्ता निष्क्रिय है, यह सर्वदा शान्त साक्षी बनी रहती है…
अगर चेतना के विकास को जीवन का मुख्य उद्देश्य मान लिया जाये तो बहुत-सी कठिनाइयों…
दुश्मन को खदेड़ने का सबसे अच्छा तरीक़ा है उसके मुँह पर हँसना! तुम उसके साथ…
आलोचना की आदत-अधिकांशतः अनजाने में की गयी दूसरों की आलोचना-सभी तरह की कल्पनाओं, अनुमानों, अतिशयोक्तियों,…