हर हालत में अपने गुरु के प्रति निष्ठावान बने रहो, वे चाहे कोई भी क्यों न हों; तुम जितनी दूर तक जा सको वे तुम्हें उतनी दूर तक ले जायेंगे। लेकिन अगर तुम्हें भगवान को ही गुरु के रूप में पाने का सौभाग्य प्राप्त हो तो तुम्हारी उपलब्धि की कोई सीमा न होगी।
संदर्भ : शिक्षा के ऊपर
भगवान के प्रति आज्ञाकारिता में सरलता के साथ सच्चे रहो - यह तुम्हें रूपांतर के…
अधिकतर लोग कार्यों को इसलिये करते हैं कि वे उन्हें करने पड़ते है, इसलिये नहीं…
मधुर माँ, जब श्रीअरविंद चेतना के परिवर्तन की बात करते हैं तो उनका अर्थ क्या…