हर एक को अपनी निश्चिति अपने ही अन्दर खोजनी चाहिये, सब चीजों के बावजूद इसे बनाये, सम्भाले रखना चाहिये और किसी भी कीमत पर, लक्ष्य तक बढ़ते जाना चाहिये । ‘विजय’ अधिक-से-अधिक सहिष्णु की होती है।

सब विरोधों के होते हुए अपनी सहन-शक्ति बनाये रखने के लिए हमारे सहारे का आधार अचल-अटल होना चाहिये और एक  ही सहारा अचल-अटल है, वह है ‘सत’ का, ‘परम सत्य’ का सहारा।

किसी और को खोजना बेकार है। केवल यही है जो कभी साथ नहीं छोड़ता।

संदर्भ : प्रश्न और उत्तर १९५६

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