यदि तुम निर्बलता के विचार को दूर फेंक दो तो शक्ति लौट आएगी। किन्तु प्राणमय भौतिक सत्ता में सदा ही कोई ऐसी चीज़ होती है, जो अधिक निर्बल और बीमार होने से प्रसन्न होती है , जिससे यह अपनी करुणाजनक अवस्था का अनुभव कर सकें और उसके लिए रो-धो सकें ।
संदर्भ : श्रीअरविंद के पत्र (चतुर्थ भाग)
तुम जिस चरित्र-दोष की बात कहते हो वह सर्वसामान्य है और मानव प्रकृति में प्रायः सर्वत्र…
भगवान के प्रति आज्ञाकारिता में सरलता के साथ सच्चे रहो - यह तुम्हें रूपांतर के…
अधिकतर लोग कार्यों को इसलिये करते हैं कि वे उन्हें करने पड़ते है, इसलिये नहीं…
मधुर माँ, जब श्रीअरविंद चेतना के परिवर्तन की बात करते हैं तो उनका अर्थ क्या…