मेरे बच्चे, निरोग होने के लिए केवल इन अनुचित अभ्यासों को पूरी तरह बन्द करना ही अनिवार्य नहीं हैं बल्कि अपने विचारऔर संवेदना से इन सभी अस्वस्थ कामनाओं से छुटकारा पाना भी अनिवार्य है , क्योंकि कामनाएँ ही इंद्रियों और अवयवों को क्षुभ्ध करती और उन्हें बीमार बनाती हैं । तुम्हें कठोरता के साथ सब कुछ साफ कर देना होगा और इसके लिए तुम्हारा संकल्प पर्याप्तशाली नहीं है; मेरे संकल्प का आवाहन करो, सच्चाई के साथ उसे बुलाओ और वह तुम्हारी सहायता के लिए मौजूद होगा । तुम्हारा यह कहना ठीक है कि मेरी सहायता से तुम निश्चय ही जीत सकोगे। यह सच है, लेकिन तुम्हें सच्चाई के साथ इस सहायता को चाहना होगा और सब परिस्थितियों में उसे अपने अन्दर काम करने देना होगा ।
संदर्भ : माताजी के वचन (भाग-३)
भगवान के प्रति आज्ञाकारिता में सरलता के साथ सच्चे रहो - यह तुम्हें रूपांतर के…
अधिकतर लोग कार्यों को इसलिये करते हैं कि वे उन्हें करने पड़ते है, इसलिये नहीं…
मधुर माँ, जब श्रीअरविंद चेतना के परिवर्तन की बात करते हैं तो उनका अर्थ क्या…