ध्यान करने की चेष्टा करने पर व्यक्तिके सामने प्रारंभ में, सर्व प्रथम बाधा निद्रा- के रूपमें आती है। उस बाधा को लांघ जानेपर एक ऐसी अवस्था आती है जिसमें तुम बन्द आंखों से भी सब प्रकार के पदार्थों, लोगों और दृश्यों को देखने लगते हो। यह कोई खराब वस्तु नहीं है, यह एक अच्छा लक्षण है और इसका अर्थ है कि तुम योग में उन्नति कर रहे हो। हमारे अन्दर बाह्य पदार्थों को देखनेवाली बाह्य भौतिक दृष्टि के अतिरिक्त एक आंतरिक दृष्टि भी है जो हमारे लिये अबतक अनदेखी और अनजानी वस्तुओंको, दूरस्थ, दूसरे देशकाल या अन्य लोकों से संबंध रखने वाली वस्तुओं को देख सकती है। यह आंतरिक दृष्टि ही तुम्हारे भीतर खुल रही है। श्रीमाँकी शक्तिकी क्रिया ही तुम्हारे अन्दर इसे खोल रही है, और तुम्हें इसे रोकने की चेष्टा नहीं करनी चाहिये। नित्य श्रीमां का स्मरण करो, उन्हें पुकारो और अन्तर में उनकी उपस्थिति एवं शक्ति की क्रिया के लिये अभीप्सा करो; किंतु इसके लिये तुम्हें उनकी क्रिया से भविष्य- में तुम्हारे अन्दर होनेवाली इस या अन्य प्रगतियों को रोकने की आवश्यकता नहीं। तुम्हें केवल कामना, अहंकार, चंचलता और अन्य अशुद्ध क्रियाओं का ही त्याग करना होगा।
सन्दर्भ : श्रीअरविन्द के पत्र (भाग-२)
भगवान के प्रति आज्ञाकारिता में सरलता के साथ सच्चे रहो - यह तुम्हें रूपांतर के…
अधिकतर लोग कार्यों को इसलिये करते हैं कि वे उन्हें करने पड़ते है, इसलिये नहीं…
मधुर माँ, जब श्रीअरविंद चेतना के परिवर्तन की बात करते हैं तो उनका अर्थ क्या…