ध्यान का भारतीय भाव व्यक्त करने के लिए अंग्रेजी में दो शब्दों का प्रयोग किया जाता है, “मेडिटेशन” तथा “कण्टेम्पलेशन”। ‘मेडिटेशन’ का समुचित अर्थ है विचारों की एक ही श्रृंखला पर मन की एकाग्रता, जो एक ही विषय पर कार्य करती है। ‘कण्टेम्प्लेशन’ का अर्थ है एक ही वस्तु, प्रतिमा अथवा बिम्ब, विचार को मानसिक रूप से समझना जिससे उस वस्तु, प्रतिमा अथवा बिम्ब या भावना के बारे में ज्ञान, मन में एकाग्रता की शक्ति से, स्वाभाविक रूप से उठ सके। ये दोनों चीजें ध्यान के ही रूप हैं, क्योंकि ध्यान का मूलतत्त्व मानसिक एकाग्रता है, चाहे वह विचार, अन्तर्दृष्टि अथवा ज्ञान में हो।

ध्यान के अन्य रूप भी हैं। एक स्थल पर विवेकानन्द तुम्हें सलाह देते हैं कि अपने विचारों से पीछे हट जाओ, उन्हें अपने मन में जैसे वे आते हैं आने दो और बस उनका अवलोकन करो और देखो वे क्या हैं। इसे आत्म-अवलोकन में एकाग्रता कहा जा सकता है।

ध्यान का यह रूप एक अन्य रूप की ओर ले जाता है-मन को सभी विचारों से रिक्त कर देना, जिससे इसमें एक प्रकार का विशुद्ध सचेतन कोरापन रह जाये, जिसके ऊपर दिव्य ज्ञान उतर सके और अपनी छाप छोड़ सके। और जो सामान्य मानव-मन के तुच्छ विचारों से विचलित न हो तथा इतना स्पष्ट हो मानों एक श्यामपट पर सफेद खड़िया से लिख दिया गया हो। तुम देखोगे कि गीता सभी मानसिक विचारों के त्याग को योग की अनेक पद्धतियों में से एक पद्धति के रूप में स्वीकार करती है।

और एक ऐसी पद्धति के रूप में भी जिसे वह मानों अधिक पसन्द करती हो। इसे मुक्ति का ध्यान कहा जा सकता है, क्योंकि यह सोचने की यान्त्रिक प्रक्रिया की गुलामी से मन को मुक्त करता है। और यह मन को इस योग्य बनाता है कि वह अपनी मर्जी से जब चाहे तब सोच सके या न सोचे, अथवा अपने विचारों को स्वयं चुन सके या विचारों से परे।

‘सत्य’ के विशुद्ध प्रत्यक्ष ज्ञान में जा सके जिसे हमारे दर्शन-शास्त्र में विज्ञान कहा जाता है। ‘मेडिटेशन’ मानव-मन के लिए सबसे आसान प्रक्रिया है, किन्तु इसके परिणाम सबसे अधिक सीमित हैं। ‘कण्टेम्प्लेशन’ अधिक कठिन है, किन्तु अधिक महत्त्वपूर्ण है। आत्म-अवलोकन तथा विचारों की बेड़ियों से मुक्ति सबसे अधिक कठिन है, किन्तु अपने परिणामों में यह विशालतम और
महानतम है। अपनी मनोवृत्ति तथा क्षमता के अनुसार कोई इनमें से एक को चुन सकता है। पूर्ण पद्धति है प्रत्येक को उसका अपना स्थान देते हुए तथा उसके अपने उद्देश्य के लिए उन सबका उपयोग करना। किन्तु इसके लिए आवश्यकता होगी एक अटल विश्वास, दृढ़ धैर्य की, तथा साथ ही योग को व्यवहार में लाने के लिए संकल्प की एक महान् शक्ति की।

संदर्भ : श्रीअरविंद के पत्र (भाग-२)

शेयर कीजिये

नए आलेख

अपने चरित्र को बदलने का प्रयास करना

सबसे पहले हमें सचेतन होना होगा, फिर संयम स्थापित करना होगा और लगातार संयम को…

% दिन पहले

भारत की ज़रूरत

भारत को, विशेष रूप से अभी इस क्षण, जिसकी ज़रूरत है वह है आक्रामक सदगुण,…

% दिन पहले

प्रेम और स्नेह की प्यास

प्रेम और स्नेह की प्यास मानव आवश्यकता है, परंतु वह तभी शांत हो सकती है…

% दिन पहले

एक ही शक्ति

माताजी और मैं दो रूपों में एक ही 'शक्ति' का प्रतिनिधित्व करते हैं - अतः…

% दिन पहले

पत्थर की शक्ति

पत्थर अनिश्चित काल तक शक्तियों को सञ्चित रख सकता है। ऐसे पत्थर हैं जो सम्पर्क की…

% दिन पहले

विश्वास रखो

माताजी,  मैं आपको स्पष्ट रूप से बता दूँ कि में कब खुश नहीं रहती; जब…

% दिन पहले