दो संभावनाएँ होती हैं, एक है व्यक्तिगत प्रयास के द्वारा शुद्धिकरण, जो लंबा समय लेता है; दूसरा है भागवत कृपा के प्रत्यक्ष हस्तक्षेप के द्वारा जो प्राय: तेजी से क्रिया करता है। भागवत कृपा के हस्तक्षेप द्वारा शुद्धिकरण के लिए व्यक्ति का सम्पूर्ण समर्पण और आत्मदान होना अनिवार्य है और उसके लिए, पुनः, सामान्य रूप से मन का पूर्णतः अचंचल होना आवश्यक है जिससे भागवत शक्ति को क्रिया करने में हर पग पर व्यक्ति की निष्ठा द्वारा समर्थन प्राप्त हो। अन्यथा, वह शांत और स्थिर बना रहे।
संदर्भ : श्रीअरविंद के पत्र (भाग-२)
तुम्हारी श्रद्धा, निष्ठा और समर्पण जितने अधिक पूर्ण होंगे, भगवती मां की कृपा और रक्षा भी…
भगवान् ही अधिपति और प्रभु हैं-आत्म-सत्ता निष्क्रिय है, यह सर्वदा शान्त साक्षी बनी रहती है…
अगर चेतना के विकास को जीवन का मुख्य उद्देश्य मान लिया जाये तो बहुत-सी कठिनाइयों…
दुश्मन को खदेड़ने का सबसे अच्छा तरीक़ा है उसके मुँह पर हँसना! तुम उसके साथ…
आलोचना की आदत-अधिकांशतः अनजाने में की गयी दूसरों की आलोचना-सभी तरह की कल्पनाओं, अनुमानों, अतिशयोक्तियों,…