आपने कहा है कि गलत गति का दमन करने से वह बस दब जाती है, यदि उसे पूरी तरह निकालना हो तो उसे एकदम त्यागना चाहिये। तब फिर क्रोध, काम, भय आदि का दमन करने क्या लाभ ?
अगर तुम्हारा त्याग सफल न हो तो दमन करना चाहिये। दमन कम-से-कम प्राणिक आवेगों का दास बनने से बचाता है। एक बार नियंत्रण हो जाये तो सफलतापूर्वक अस्वीकार करना आसान हो जाता है। नियंत्रण के अभाव से सफल त्याग नहीं आता।
संदर्भ : योग के तत्व
तुम्हारी श्रद्धा, निष्ठा और समर्पण जितने अधिक पूर्ण होंगे, भगवती मां की कृपा और रक्षा भी…
भगवान् ही अधिपति और प्रभु हैं-आत्म-सत्ता निष्क्रिय है, यह सर्वदा शान्त साक्षी बनी रहती है…
अगर चेतना के विकास को जीवन का मुख्य उद्देश्य मान लिया जाये तो बहुत-सी कठिनाइयों…
दुश्मन को खदेड़ने का सबसे अच्छा तरीक़ा है उसके मुँह पर हँसना! तुम उसके साथ…
आलोचना की आदत-अधिकांशतः अनजाने में की गयी दूसरों की आलोचना-सभी तरह की कल्पनाओं, अनुमानों, अतिशयोक्तियों,…