यह (थकावटका कारण) शायद कोई कामना अथवा प्राणिक अभिरुचि है —प्राण की पसन्दगी और नापसन्दगी है। जो कार्य तुम्हें दिये जायं उन सबको तुम्हें श्रीमाताजी के कार्यके रूपमें अनुभव करना चाहिये और हर्ष के साथ करना चाहिये और अपनेको श्रीमाँ की शक्ति की ओर खोलना चाहिये जिसमें वह तुम्हारे द्वारा कार्य करे।
सन्दर्भ : श्रीअरविन्द के पत्र(भाग-२)
जो अपने हृदय के अन्दर सुनना जानता है उससे सारी सृष्टि भगवान् की बातें करती…
‘भागवत कृपा’ के सामने कौन योग्य है और कौन अयोग्य? सभी तो उसी एक दिव्य…
सच्चा आराम आन्तरिक जीवन में होता है, जिसके आधार में होती है शांति, नीरवता तथा…