तुम्हारा लक्ष्य

एकमात्र श्रीमाँ ही तुम्हारा लक्ष्य हैं। वे अपने अन्दर सब कुछ समाये हुये हैं। उनका पास होना अपने पास सब कुछ का होना है। अगर तुम उनकी ‘चेतना’ में रहो तो बाकी सभी गुण स्वतः ही खिल उठते हैं।

संदर्भ : श्रीअरविंद के ‘बांग्ला रचनाओ’ से 

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