श्रेणियाँ श्री माँ के वचन

ज्योतिर्मय वातावरण

…. जब तुम अच्छे हो, जब तुम उदार हो, महान, निःस्वार्थ और परोपकारी हो तो तुम अपने अन्दर, अपने चारों ओर एक वातावरण उत्पन्न करते हो और यह वातावरण एक प्रकार की ज्योतिर्मयी शान्ति की तरह होता है। तुम सूर्य की रोशनी में एक फूल की तरह साँस लेते हो और विकसित होते हो, और कटुता, विद्रोह और सन्ताप में अपनी ओर मुड़ने की दुःखद अवस्था में नहीं लौटते। सहज, स्वाभाविक रूप में, वातावरण ज्योतिर्मय बन जाता है। और जो हवा तुम साँस में लेते हो वह आनन्द से भरी होती है। बस, तुम इसी हवा को साँस में लेते हो जब शरीर में रहते हो या शरीर से बाहर, जाग्रत् अवस्था में होते हो या नींद की अवस्था में, जीवन में होते हो या जीवन से बाहर चले जाते हो, पार्थिव जीवन से
बाहर, जब तक तुम नया जीवन नहीं प्राप्त कर लेते।

सभी दोषपूर्ण कार्य चेतना पर उस हवा के जैसा प्रभाव उत्पन्न करते हैं जो सुखा देती है, उस ठण्डक के जैसा प्रभाव डालते हैं जो जमा देती है, अथवा उस जलती लौ के जैसा प्रभाव डालते हैं जो जला कर भस्म कर देती है।

सभी अच्छे और सौजन्यपूर्ण कार्य ज्योति, विश्रान्ति और आनन्द प्रदान करते हैं-सूर्य का वह प्रकाश ले आते हैं जिसमें फूल खिलते हैं।

संदर्भ : प्रश्न और उत्तर १९२९-१९३१

शेयर कीजिये

नए आलेख

रूपांतर का मार्ग

भगवान के प्रति आज्ञाकारिता में सरलता के साथ सच्चे रहो - यह तुम्हें रूपांतर के…

% दिन पहले

सच्चा ध्यान

सच्चा ध्यान क्या है ? वह भागवत उपस्थिती पर संकल्प के साथ सक्रिय रूप से…

% दिन पहले

भगवान से दूरी ?

स्वयं मुझे यह अनुभव है कि तुम शारीरिक रूप से, अपने हाथों से काम करते…

% दिन पहले

कार्य के प्रति मनोभाव

अधिकतर लोग कार्यों को इसलिये करते हैं कि वे उन्हें करने पड़ते है, इसलिये नहीं…

% दिन पहले

चेतना का परिवर्तन

मधुर माँ, जब श्रीअरविंद चेतना के परिवर्तन की बात करते हैं तो उनका अर्थ क्या…

% दिन पहले

जीवन उत्सव

यदि सचमुच में हम, ठीक से जान सकें जीवन के उत्सव के हर विवरण को,…

% दिन पहले