जैन दर्शन का संबंध व्यक्तिगत पूर्णता से है। हमारा प्रयास बिल्कुल भिन्न है। हम एक नवीन शक्ति के रूप में अतिमानस को उतार लाना चाहते हैं । ठीक जिस तरह आजकल मनुष्यजाति के अंदर मन चेतना की स्थायी स्थिति है,उसी तरह हम एक ऐसी जाति की सृष्टि करना चाहते हैं जिसमें अतिमानस चेतना की स्थायी स्थिति होगी ।
संदर्भ : श्रीअरविंद के पत्र (भाग-१)
भगवान के प्रति आज्ञाकारिता में सरलता के साथ सच्चे रहो - यह तुम्हें रूपांतर के…
अधिकतर लोग कार्यों को इसलिये करते हैं कि वे उन्हें करने पड़ते है, इसलिये नहीं…
मधुर माँ, जब श्रीअरविंद चेतना के परिवर्तन की बात करते हैं तो उनका अर्थ क्या…