एक बार माताजी के साथ मेरी लम्बी बातचीत हुई | उन्होंने मुझसे जो कुछ कहा, वह काफी रोचक था | उस वार्ता ने मेरे मर्म को गहरा स्पर्श किया | दुसरे दिन मैंने माताजी से पुछा की जो कुछ उन्होंने मुझसे कहा है, क्या वे उसे मेरे लिए लिख देंगी | उन्होंने उसे सार रूप में लिख दिया :
चम्पकलाल,
१. अपने ह्रदय में भगवान के प्रति सदा निष्टावान् रहो |
२. तुम अपने समर्पण की पूर्णता में किसीको भी हस्तक्षेप न करने दो और न अपनी उस प्रगति में बाधक होने दो जो अबतक काफी सन्तोषजनक रही है |
३. अपनी वर्तमान परिस्थितियों को और उसकी … वापसी को एक परीक्षा की तरह लो और विजयी भाव से उसका सामना करो |
४. सतर्क रहो |
संदर्भ : चम्पकलाल की वाणी
तुम्हारी श्रद्धा, निष्ठा और समर्पण जितने अधिक पूर्ण होंगे, भगवती मां की कृपा और रक्षा भी…
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आलोचना की आदत-अधिकांशतः अनजाने में की गयी दूसरों की आलोचना-सभी तरह की कल्पनाओं, अनुमानों, अतिशयोक्तियों,…