. . . किसी एक ही रचना पर जोर देने से वह कठोरता आ जाती है जो भूतकाल में भारतीय समाज और उसकी सभ्यता पर छा गयी थी और जिसने उसकी आत्मा का ह्वास कर उसे बन्दी बना दिया था। जब भारत के अंदर अनेकता थी, लेकिन सबमें आत्मा एक थी तब वह सबसे अधिक बलशाली और सबसे अधिक जीवन्त था। -अलीपुर जेल में मुझे इसी का पूर्वदर्शन हुआ था, आज भी मेरा यही मानना है कि भविष्य में भी भारत जब ‘स्व-रूप’ पा लेगा तब वह जगद-गुरु बन जायेगा।
संदर्भ : श्रीअरविंद (खण्ड – ३६)
भगवान के प्रति आज्ञाकारिता में सरलता के साथ सच्चे रहो - यह तुम्हें रूपांतर के…
अधिकतर लोग कार्यों को इसलिये करते हैं कि वे उन्हें करने पड़ते है, इसलिये नहीं…
मधुर माँ, जब श्रीअरविंद चेतना के परिवर्तन की बात करते हैं तो उनका अर्थ क्या…