दर्शन संदेश १५ अगस्त २०१८ (२/४)
. . . किसी एक ही रचना पर जोर देने से वह कठोरता आ जाती है जो भूतकाल में भारतीय समाज और उसकी सभ्यता पर छा गयी थी और जिसने उसकी आत्मा का ह्वास कर उसे बन्दी बना दिया था। जब भारत के अंदर अनेकता थी, लेकिन सबमें आत्मा एक थी तब वह सबसे अधिक बलशाली और सबसे अधिक जीवन्त था। -अलीपुर जेल में मुझे इसी का पूर्वदर्शन हुआ था, आज भी मेरा यही मानना है कि भविष्य में भी भारत जब ‘स्व-रूप’ पा लेगा तब वह जगद-गुरु बन जायेगा।
संदर्भ : श्रीअरविंद (खण्ड – ३६)
यदि तुम्हारें ह्रदय और तुम्हारी आत्मा में आध्यात्मिक परिवर्तन के लिए सच्ची अभीप्सा jहै, तब…
जब शारीरिक अव्यवस्था आये तो तुम्हें डरना नहीं चाहिये, तुम्हें उससे निकल भागना नहीं चाहिये,…
आश्रम में दो तरह के वातावरण हैं, हमारा तथा साधकों का। जब ऐसे व्यक्ति जिनमें…
.... मनुष्य का कर्म एक ऐसी चीज़ है जो कठिनाइयों और परेशानियों से भरी हुई…
अगर श्रद्धा हो , आत्म-समर्पण के लिए दृढ़ और निरन्तर संकल्प हो तो पर्याप्त है।…