जो चीज़ योग करने का संकल्प करती है वह तुम्हारा शरीर या तुम्हारा प्राण, यहाँ तक कि तुम्हारा मन भी नहीं है, वह तुम्हारें मन का उच्चतर भाग या तुम्हारा चैत्य पुरुष होता है ।
संदर्भ : प्रश्न और उत्तर (१९५०-१९५१)
भगवान के प्रति आज्ञाकारिता में सरलता के साथ सच्चे रहो - यह तुम्हें रूपांतर के…
अधिकतर लोग कार्यों को इसलिये करते हैं कि वे उन्हें करने पड़ते है, इसलिये नहीं…
मधुर माँ, जब श्रीअरविंद चेतना के परिवर्तन की बात करते हैं तो उनका अर्थ क्या…