… जब तुम्हें लगे कि तुम पूरी तरह किसी सँकरे, सीमित विचार, इच्छा और चेतना में बंद हो, जब तुम्हें ऐसा लगे कि तुम किसी सीप में बंद हो, तो तुम किसी बहुत विशाल चीज़ के बारे में सोचने लगो, उदाहरण के लिए, समुद्र के जल की विशालता, और अगर सचमुच तुम समुद्र के बारे में सोच सको कि वह कैसे दूर, दूर, दूर, दूर तक सभी दिशाओं में फैला है, इस तरह (माताजी बाहें फैला देती हैं), कैसे तुम्हारी तुलना में वह इतनी दूर है , इतनी दूर कि तुम उसका दूसरा तट भी नहीं देख सकते, उसके छोर के आस-पास भी नहीं पहुँच सकते, न पीछे, न आगे, न दायें, न बाएँ … वह विशाल, विशाल, विशाल, विशाल है। … तुम उसके बारे में सोचते हो और यह अनुभव करते हो कि तुम इस समुद्र पर उतरा रहे हो, इस तरह, और कहीं कोई सीमा नहीं है … । यह बहुत आसान है। तब तुम अपनी चेतना को कुछ, थोड़ा और विस्तृत कर सकते हो।
संदर्भ : प्रश्न और उत्तर १९५४
तुम्हारी श्रद्धा की तीव्रता का यह अर्थ हो सकता है कि भगवान ने यह पहले…
जब शारीरिक अव्यवस्था आये तो तुम्हें डरना नहीं चाहिये, तुम्हें उससे निकल भागना नहीं चाहिये,…
सहायता के लिये श्रीअरविंद को पुकारो और सब कुछ ठीक हो जायेगा। संदर्भ : श्रीमातृवाणी…
योग के लिए अपने आपको तैयार करने के लिए क्या करना चाहिये? सबसे पहले व्यक्ति…