हमारी मानव चेतना में ऐसी खिड़कियाँ हैं जो शाश्वत में खुलती हैं । लेकिन मनुष्य साधारणत: इन खिड़कीयों को सावधानी से बन्द रखते हैं । हमें उन्हे पूरी तरह से खोल देना और शाश्वत को बेरोक-टोक अपने अन्दर आने देना चाहिये ताकि वह हमें रूपांतरित कर सके।
खिड़कियाँ खोलने के लिए दो शर्तें जरूरी हैं :
१. तीव्र अभीप्सा ।
२. अहंकार का उत्तरोत्तर विलय ।
जो सच्चाई के साथ काम में लगते हैं उनके लिए भागवत सहायता निश्चित है ।
संदर्भ : श्रीमातृवाणी (खण्ड-१६)
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