मधुर माँ, मैं पहली दिसम्बर (वार्षिक सांस्कृतिक कार्यक्रम ) के लिए पूरी तरह तैयार नहीं हूँ, और मैं जरा भी उत्साह का अनुभव नहीं करता ।
जिस क्षण तुमने किसी चीज़ को स्वीकार करने का निश्चय कर लिया है तभी से उसे भरसक अच्छी-से-अच्छी तरह करना चाहिये।
तुम हर चीज़ में चेतना और आत्म-प्रभुत्व में प्रगति करने का अवसर प्राप्त कर सकते हो और प्रगति के लिए यह प्रयास उस चीज़ को – वह कुछ भी क्यों न हो – तुरंत रुचिकर बना देता है ।
संदर्भ : श्रीमातृवाणी (खण्ड-१६)
तुम जिस चरित्र-दोष की बात कहते हो वह सर्वसामान्य है और मानव प्रकृति में प्रायः सर्वत्र…
भगवान के प्रति आज्ञाकारिता में सरलता के साथ सच्चे रहो - यह तुम्हें रूपांतर के…
अधिकतर लोग कार्यों को इसलिये करते हैं कि वे उन्हें करने पड़ते है, इसलिये नहीं…
मधुर माँ, जब श्रीअरविंद चेतना के परिवर्तन की बात करते हैं तो उनका अर्थ क्या…