प्रत्येक साधक नैसर्गिक रूप से कुछ ऐसी चारित्रिकताएँ लिए होता है जो साधना पथ पर बड़ी बाधा उपस्थित करती है, ये जिद के साथ टिकी रहती हैं। इन्हें पार किया जा सकता है बहुत बहुत समय बाद भी भीतर से दिव्यता की क्रिया के द्वारा ……. ।
संदर्भ : श्रीअरविंद के पत्र
भगवान के प्रति आज्ञाकारिता में सरलता के साथ सच्चे रहो - यह तुम्हें रूपांतर के…
अधिकतर लोग कार्यों को इसलिये करते हैं कि वे उन्हें करने पड़ते है, इसलिये नहीं…
मधुर माँ, जब श्रीअरविंद चेतना के परिवर्तन की बात करते हैं तो उनका अर्थ क्या…