कोई क्या कर रहा है या नहीं कर रहा इसके बारे में गप्पबाज़ी करना ग़लत है।
ऐसी गप्प को सुनना ग़लत है।
यह देखना कि यह गप्प सच है या नहीं ग़लत है।
झूठी गप्पों का शब्दों में प्रतिकार करना ग़लत है।
सारी चीज़ अपने समय को नष्ट करने और अपनी चेतना को नीचे गिराने का बहुत बुरा तरीक़ा है।
जब तक कि इस घृणित आदत को वातावरण से मिटा नहीं दिया जाता तब तक ‘आश्रम’ अपने भागवत जीवन के लक्ष्य तक कभी नहीं पहुँचेगा।
संदर्भ : माताजी के वचन (भाग-२)
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