मेरे ख़याल से, वास्तव में हमारे दोष भी प्रायः हमें बहुत आकर्षक प्रतीत होते हैं और अपनी सब कमजोरियों को हम उचित ठहराते हैं। परन्तु सच तो यह है कि आत्म-विश्वास की कमी से हम ऐसा करते हैं। क्या आपको इससे आश्चर्य होता है?… हाँ, मैं फिर कहती हूँ कि अपने अन्दर आत्म-विश्वास की कमी से हम ऐसा करते हैं। यह कमी उसमें नहीं है जो हम इस क्षण हैं और न ही यह हमारी बाह्य सत्ता में है जो क्षणिक और सदा परिवर्तनशील है-यह तो हमें सदा लुभावनी लगती है बल्कि हमारे अन्दर उस चीज़ के लिए विश्वास की कमी है जो हम प्रयास से बन सकते हैं, हमें उस पूर्ण तथा गहन- रूपान्तर में विश्वास नहीं है जो हमारी आत्मा का, उस अमर अविनाशी भगवान् का कार्य होगा जो सब जीवों में निवास करता है। और यह कार्य तभी होगा जब हम अपने-आपको बालक की भाँति उनके अनन्त ज्योतिर्मय और दूरदर्शी पथ-प्रदर्शन पर छोड़ देंगे।
संदर्भ : पहले की बातें
भगवान के प्रति आज्ञाकारिता में सरलता के साथ सच्चे रहो - यह तुम्हें रूपांतर के…
अधिकतर लोग कार्यों को इसलिये करते हैं कि वे उन्हें करने पड़ते है, इसलिये नहीं…
मधुर माँ, जब श्रीअरविंद चेतना के परिवर्तन की बात करते हैं तो उनका अर्थ क्या…