तुम्हें चीजों को उसी तरह बढ़ने देना चाहिये जैसे प्रकृति में पौधे बढ़ते हैं। हम उनके समय से पहले उन पर बहुत कड़ाई या सीमा आरोपित करना चाहें तो वह उनके स्वाभाविक विकास में बाधक ही होगा जिसे देर या सवेर नष्ट करना ही होगा।
प्रकृतिस्थ भगवान् कोई चीज अन्तिम रूप से नहीं बनाते । हर चीज अस्थायी है और साथ-ही-साथ उस समय की परिस्थितियों के अनुसार यथासम्भव पूर्ण होती है।
सन्दर्भ : माताजी के वचन (भाग-३)
यदि तुम्हारें ह्रदय और तुम्हारी आत्मा में आध्यात्मिक परिवर्तन के लिए सच्ची अभीप्सा jहै, तब…
जब शारीरिक अव्यवस्था आये तो तुम्हें डरना नहीं चाहिये, तुम्हें उससे निकल भागना नहीं चाहिये,…
आश्रम में दो तरह के वातावरण हैं, हमारा तथा साधकों का। जब ऐसे व्यक्ति जिनमें…
.... मनुष्य का कर्म एक ऐसी चीज़ है जो कठिनाइयों और परेशानियों से भरी हुई…
अगर श्रद्धा हो , आत्म-समर्पण के लिए दृढ़ और निरन्तर संकल्प हो तो पर्याप्त है।…