अधिकतर लोग कार्यों को इसलिये करते हैं कि वे उन्हें करने पड़ते है, इसलिये नहीं कि उन्हें उनमें सुख प्राप्त होता है। प्रकृति केवल अपने शौक और दिलचस्पी की चीजों में ही किसी प्रकार के सुख का अनुभव करती है, साधारणतया काम में नहीं – निस्संदेह जब तक स्वयं काम ही व्यक्ति के शौक या दिलचस्पी की चीज़ न बन जाय और जिसमें वह जब चाहे तब रस लेने लगे या उसे छोड़ दे।
संदर्भ : श्रीअरविंद के पत्र (भाग-२)
तुम्हारी श्रद्धा, निष्ठा और समर्पण जितने अधिक पूर्ण होंगे, भगवती मां की कृपा और रक्षा भी…
भगवान् ही अधिपति और प्रभु हैं-आत्म-सत्ता निष्क्रिय है, यह सर्वदा शान्त साक्षी बनी रहती है…
अगर चेतना के विकास को जीवन का मुख्य उद्देश्य मान लिया जाये तो बहुत-सी कठिनाइयों…
दुश्मन को खदेड़ने का सबसे अच्छा तरीक़ा है उसके मुँह पर हँसना! तुम उसके साथ…
आलोचना की आदत-अधिकांशतः अनजाने में की गयी दूसरों की आलोचना-सभी तरह की कल्पनाओं, अनुमानों, अतिशयोक्तियों,…