अधिकतर लोग कार्यों को इसलिये करते हैं कि वे उन्हें करने पड़ते है, इसलिये नहीं कि उन्हें उनमें सुख प्राप्त होता है। प्रकृति केवल अपने शौक और दिलचस्पी की चीजों में ही किसी प्रकार के सुख का अनुभव करती है, साधारणतया काम में नहीं – निस्संदेह जब तक स्वयं काम ही व्यक्ति के शौक या दिलचस्पी की चीज़ न बन जाय और जिसमें वह जब चाहे तब रस लेने लगे या उसे छोड़ दे।
संदर्भ : श्रीअरविंद के पत्र (भाग-२)
यदि तुम्हारें ह्रदय और तुम्हारी आत्मा में आध्यात्मिक परिवर्तन के लिए सच्ची अभीप्सा jहै, तब…
जब शारीरिक अव्यवस्था आये तो तुम्हें डरना नहीं चाहिये, तुम्हें उससे निकल भागना नहीं चाहिये,…
आश्रम में दो तरह के वातावरण हैं, हमारा तथा साधकों का। जब ऐसे व्यक्ति जिनमें…
.... मनुष्य का कर्म एक ऐसी चीज़ है जो कठिनाइयों और परेशानियों से भरी हुई…
अगर श्रद्धा हो , आत्म-समर्पण के लिए दृढ़ और निरन्तर संकल्प हो तो पर्याप्त है।…