….. ऐक्य के तीन स्वरूप हैं। एक ऐक्य तादात्म्य के द्वारा आध्यात्मिक सत्त्व में होता है; एक अन्य प्रकार का ऐक्य इस सर्वोच्च ‘सत्ता’ और ‘चेतना’ में हमारी आत्मा के निवास द्वारा साधित होता है; एक और तरह का-तत् तथा यहां हमारी यान्त्रिक सत्ता के बीच प्रकृति के सादृश्य अथवा एकत्व का गत्यात्मक ऐक्य है। प्रथम है अज्ञान से मुक्ति और यथार्थ तथा शाश्वत के साथ तादात्म्य, मोक्ष, सायुज्य, जो ज्ञानयोग का विशिष्ट लक्ष्य है। दूसरा, भगवान् के साथ या भगवान् में आत्मा का निवास, सामीप्य या सालोक्य पाना है-इसमें प्रेम तथा आनन्द के समस्त योग की तीव्र आशा रहती है। तीसरा, भगवान् की प्रकृति के साथ तादात्म्य, सादृश्य, तत् के समान पूर्ण होना है-इसमें शक्ति तथा पूर्णता या भागवत कर्म और सेवा
के समस्त योग का उच्चाशय रहता है। आत्माभिव्यक्त भगवान् की बहुविध एकता पर यहां संस्थापित तीनों की एक साथ सम्मिलित पूर्णता, समग्र योग का सम्पूर्ण परिणाम, इसके त्रिपक्षीय मार्ग का लक्ष्य और इसके त्रिपक्षीय यज्ञ का परिणाम है।
संदर्भ : योग समन्वय
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