” जिस समय हर चीज़ बुरी से अधिक बुरी अवस्था की ओर जाती हुई प्रतीत होती है, ठीक उसी समय अपनी महती श्रद्धा का परिचय देना चाहिये और यह जानना चाहिये कि भगवत्कृपा कभी हमारा साथ नहीं छोड़ेगी।”
श्रीमाँ की टिप्पणी :
यह प्रार्थना नहीं है बल्कि एक प्रोत्साहन है।
वह प्रोत्साहन और उसकी व्याख्या इस प्रकार है :
उषा से पहले की घड़ियाँ सदा ही घनघोर अंधकार से भरी होती हैं।
स्वतंत्रता आने से ठीक पहले की परतंत्रता सबसे अधिक दुखदायी होती है।
परंतु श्रद्धा से मण्डित ह्रदय में आशा की वह सनातन ज्योति जलती रहती है जो निराशा के लिए कोई अवकाश नहीं देती ।
संदर्भ : माताजी के वचन (भाग -३)
तुम्हारी श्रद्धा, निष्ठा और समर्पण जितने अधिक पूर्ण होंगे, भगवती मां की कृपा और रक्षा भी…
भगवान् ही अधिपति और प्रभु हैं-आत्म-सत्ता निष्क्रिय है, यह सर्वदा शान्त साक्षी बनी रहती है…
अगर चेतना के विकास को जीवन का मुख्य उद्देश्य मान लिया जाये तो बहुत-सी कठिनाइयों…
दुश्मन को खदेड़ने का सबसे अच्छा तरीक़ा है उसके मुँह पर हँसना! तुम उसके साथ…
आलोचना की आदत-अधिकांशतः अनजाने में की गयी दूसरों की आलोचना-सभी तरह की कल्पनाओं, अनुमानों, अतिशयोक्तियों,…