… हमें एक प्रमुख विचार पर, हमारी सत्ता के स्वामी, हमारे तथा जगत् में व्याप्त ईश्वर, सर्वोच्च आत्मन्, विश्वव्यापी आत्मा के प्रति आत्म-समर्पण पर, एकनिष्ठ रूप से डटे रहना होगा। इस उत्कृष्ट विचार में निमग्न बुद्धि को इसके अपने ही लघु आग्रहों व प्राथमिकताओं को हतोत्साहित करना होगा और सम्पूर्ण सत्ता को यह सिखाना होगा कि अहंकार चाहे तर्कणा, व्यक्तिगत संकल्प, हृदय अथवा प्राणस्थित कामनात्मा के माध्यम से कितना भी अपना दावा पेश करे, उसका दावा किसी तरह से भी यथोचित नहीं है और शोक, विद्रोह, बेचैनी, कष्ट-यह सब सत्ता के स्वामी के प्रति अपमान है।
संदर्भ : योग समन्वय
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