एक निर्दोष आवश्यकता


श्रीअरविंद आश्रम की श्री माँ का चित्र

जो बुद्धि के उच्चतर स्तरों पर पहुंच चुके है, लेकिन जिन्होंने मानसिक क्षमताओं पर अधिकार नहीं पाया है उनमें एक निर्दोष आवश्यकता यह होती है कि हर एक व्यक्ति उन्हीं की तरह सोचे और उसी तरह समझे जैसे वे समझते है और जब वे देखते है कि अन्य लोग नहीं देख पाते, नहीं समझ पाते, तो उनकी प्रतिक्रिया होती है, उन्हें धक्का लगता है और वे कहते है : ”कैसे हैं! ” लेकिन वे मूर्ख नहीं हैं, वे भिन्न हैं, वे दूसरे क्षेत्र में हैं । तुम जानवर के पास जाकर यह नहीं कहते. ”तुम मूर्ख हों”, तुम कहते हों ”यह जानवर है ।’, उसी भांति तुम कहते हों. ”यह आदमी है ।” यह आदमी है, हां, कुछ ऐसे लोग है जो अब मनुष्य नहीं रहे और अभी देवता भी नहीं बने है । वे एक ऐसी स्थितिमें… कुछ अजीब, भद्दी-सी स्थितिमें हैं ।

सन्दर्भ : पथ पर


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