उदीयमान सूर्य का पाठ


श्रीअरविंद आश्रम की श्रीमाँ

साहस रखो। उस पाठ को ध्यान से सुनो जो उदीयमान सूर्य हर सबह अपनी प्रथम किरणों के साथ पृथ्वी के लिए लाता है। यह आशा का पाठ
है, सान्त्वना का सन्देश है।

तम, जो रोते हो, कष्ट पाते हो, भय से काँपते हो, तुम, जिनमें यह जानने का साहस नहीं कि तुम्हारे दुःखों की अवधि कितनी है, और तुम्हारे दुःख का क्या परिणाम है, देखो, ऐसी कोई रात नहीं जिसके बाद प्रभात न आये। जब अन्धकार सबसे घना होता है तभी उषा फूटने को तैयार रहती है। ऐसा कोई कुहासा नहीं जिसे सूर्य दूर न कर सके , ऐसी कोई बदली नहीं जिसे वह स्वर्णिम न कर दे, ऐसा कोई आँसू नहीं जिसे एक दिन वह सुखा न दे, ऐसा कोई तूफ़ान नहीं जिसके बाद उसका विजय-धनु चमक न उठे, ऐसा कोई हिम नहीं जिसे वह पिघला न दे, ऐसी कोई शीत-ऋतु नहीं जिसे वह रंगीन वसन्त में न बदल दे।।

और इसी प्रकार तुम्हारे लिए भी ऐसी कोई विपत्ति नहीं जो प्रतिदान में अपने बराबर ऐश्वर्य न लाये, ऐसी कोई वेदना नहीं जो आनन्द में रूपान्तरित
न हो सके, ऐसी कोई पराजय नहीं जो विजय में न बदल जाये ऐसा कोई पतन नहीं जो उच्चतर उत्थान में परिणत न हो, ऐसी कोई निर्जनता नहीं
जो जीवन का नीड़ न बने, ऐसी कोई असंगति नहीं जो संगति में न बदल सके। कभी-कभी दो मनों का मतभेद ही दो हृदयों को मिलने के लिए
बाधित करता है। संक्षेप में, ऐसी असीम कोई दुर्बलता नहीं जो शक्ति में परिणत न हो सके। वरन् चरम दुर्बलता के अन्दर ही सर्वशक्तिमान् भगवान्
प्रकट होना पसन्द करते हैं।

 

संदर्भ : पहले की बातें 


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