. . . मैं यहाँ भौतिक उदारता की चर्चा नहीं करूँगी जिसका स्वाभाविक स्वरूप है अपने पास जो कुछ हो उसे दूसरों को देना। परंतु यह गुण भी बहुत अधिक लोगों में नहीं पाया जाता, क्योंकि जैसी ही कोई धनी हो जाता है, वह दान कर देने के बदले कहीं अधिक अपने धन को बचाये रखने की बात सोचने लगता है। मनुष्य जितना अधिक धनाढ्य होता है उतना ही कम वह उदार होता है ।
मैं यहाँ नैतिक उदारता की चर्चा करना चाहती हूँ। उदाहरणार्थ, जब अपना कोई साथी सफल हो तो प्रसन्नता अनुभव करनी चाहिये। साहस के, नि:स्वार्थ भाव के, उच्च त्याग के कार्यों में एक प्रकार का सौंदर्य होता है जो हमें आनंद प्रदान करता है। यह कहा जा सकता है कि नैतिक उदारता का तात्पर्य है, दूसरों की यथार्थ मूल्य-मर्यादा और श्रेष्ठता को पहचानने में समर्थ होना।
संदर्भ : प्रश्न और उत्तर १९५०-१९५१
भगवान के प्रति आज्ञाकारिता में सरलता के साथ सच्चे रहो - यह तुम्हें रूपांतर के…
अधिकतर लोग कार्यों को इसलिये करते हैं कि वे उन्हें करने पड़ते है, इसलिये नहीं…
मधुर माँ, जब श्रीअरविंद चेतना के परिवर्तन की बात करते हैं तो उनका अर्थ क्या…