केवल दुर्बल लोग ही उत्तेजित रहते हैं, जैसे ही कोई सचमुच प्रबल बन जाता है वह शांतिपूर्ण, स्थिर, अचंचल बन जाता है, और उसमें प्रतिकूल लहरों का, जो उसे विषुब्ध करने की आशा से बाहर से टूट पड़ती है , सामना करने की सहनशक्ति होती है । यह सच्ची निश्चलता हमेशा ही शक्ति का एक चिन्ह होती है । स्थिरता शक्तिसंपन्न लोगों की चीज़ होती है ।
संदर्भ : प्रश्न और उत्तर (१९५६)
जो अपने हृदय के अन्दर सुनना जानता है उससे सारी सृष्टि भगवान् की बातें करती…
‘भागवत कृपा’ के सामने कौन योग्य है और कौन अयोग्य? सभी तो उसी एक दिव्य…
सच्चा आराम आन्तरिक जीवन में होता है, जिसके आधार में होती है शांति, नीरवता तथा…