आलोचना की आदत-अधिकांशतः अनजाने में की गयी दूसरों की आलोचना-सभी तरह की कल्पनाओं, अनुमानों, अतिशयोक्तियों, मिथ्या व्याख्याओं, यहां तक कि स्थूल अन्वेषणों से मिश्रित, विश्वव्यापी रोगों में से एक है। यह प्राण का एक रोग है जिसमें भौतिक मन सहायता करता है और प्राण की इस ऊसर तथा हानिकारक खोज द्वारा प्राप्त सुख का यन्त्र बन जाता है। यदि आन्तरिक अनुभूति का बाहरी जीवन में कोई सच्चा रूपान्तरकारी प्रभाव लाना हो तो वाणी का नियन्त्रण तथा प्राण के इस रोग तथा खुजली की अस्वीकृति अत्यन्त आवश्यक है।

संदर्भ : श्रीअरविंद के पत्र 

शेयर कीजिये

नए आलेख

आध्यात्मिक जीवन की तैयारी

"आध्यात्मिक जीवन की तैयारी करने के लिए किस प्रारम्भिक गुण का विकास करना चाहिये?" इसे…

% दिन पहले

उदार विचार

मैंने अभी कहा था कि हम अपने बारे में बड़े उदार विचार रखते हैं और…

% दिन पहले

शुद्धि मुक्ति की शर्त है

शुद्धि मुक्ति की शर्त है। समस्त शुद्धीकरण एक छुटकारा है, एक उद्धार है; क्योंकि यह…

% दिन पहले

श्रीअरविंद का प्रकाश

मैं मन में श्रीअरविंद के प्रकाश को कैसे ग्रहण कर सकता हूँ ? अगर तुम…

% दिन पहले

भक्तिमार्ग का प्रथम पग

...पूजा भक्तिमार्ग का प्रथम पग मात्र है। जहां बाह्य पुजा आंतरिक आराधना में परिवर्तित हो…

% दिन पहले

क्या होगा

एक परम चेतना है जो अभिव्यक्ति पर शासन करती हैं। निश्चय ही उसकी बुद्धि हमारी…

% दिन पहले